#नाग चालीसा । #कालसर्फ़ दोष निवारण #चालीसा | Navnag Chalisha #नागपंचमी विशेष
नाग चालीसा
अनन्त वासुकि शेष, पद्यनाभं कम्बलं । शंख पालं घृतराष्टं, तक्षकं कालियं तथा । एतानि नवनामानि नागमं च महात्तमनमं ॥
सांय काले पठेनित्यं प्रात:काले विशेषतः । तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवते ॥
नमो नमो भीलट दुःख हरते, नमो नमो देवा सुख करते।
मन-भावन है रुप तिहारो, द्वार खड़ो में सेवक थारो ।।
कोमल अंग श्याम रंग प्यारा, चाल चलत रेवा सी धारा ।
सिंदूर धृत संग चोला साजे, देख-देख मन हर्ष विराजे ॥
रुप तिहारो अधिक सुहावे, दर्शन कर जन अति सुख पावे ।
प्रलय काल सब नाशन हारे, तुम गौरी शिव शंकर प्यारे ।।
शेष-नाग बन धरा उठाये, महादेव गल माल सजाये ।
लक्ष्मण रुप लियो जगदाता, राम काज कियो सुखदाता ।।
नदी पहेट तुम्ही विराजत, सभी काज तुमसे ही साजत ।
सब जीवन भय ताप हरत हो, बांझन की झोली भरत हो ।।
सांचे मन जब नाम लिया, श्री तेजा को तार दिया।
महिमा अपरम्पार तिहारी, दर्शन दो मौहे इच्छाधारी ॥
काहुर बंगाल में लीला रचाई, संग चलत है भैरव भाई।
चमत्कार तैलन को बतायो, बारम्बार प्रणाम करायो ।।
घाणा से भैरव को छुडायो, माँ पद्मा संग ब्याह रचायो ।
श्री विष्णु संग लगन लगाई, शेषनाग ने सैया सजाई ॥
बड़े भाई बन साथ निभायो, कृष्ण से फण पै नाच नचायो ।
दैत्य-देव जब युद्ध छिडायो, तुमको ही तो डोर बनायो ।।
उग्र रुप आप धर आये, भय और बाधा पास न आये।
जब-जब नाम करो उच्चारण, रुप अनेक करे प्रभु धारण ।।
अनंत -नाग, तुम वासुकी - राजा, तुम नदी पहेट के श्याम राजा ।
शेष, पद्म, कंवल जगदाता, शंखपाल, धृतराष्ट्र विधाता ।।
तक्षक कालि से काल डर भागे, शुभ कारज तुम रहते आगे ।
धुप दीप जो दुध चढावे, नर-नारी मनवाछिंत फल पावे ।।
नागपंचमी तुमको भावे, रविवार भी अधिक सुहावे ।
तुम विमला में विचरण करते, क्षम में सब के सब दुख हरते ।।
रविवार श्री फल जो चढ़ावे, काल सर्प प्रभु दोष छुड़ावे ।
ब्रह्मा मुहुर्त जो तुमको ध्यावे, शिव के कृपा पात्र बन जावे ।।
खाली हाथ को कर्म सिखाते, रंक को भी राज दिलाते।
जन जन मन फेलों अधियारो, तिनहु लोक करीयो उजियारो ।।
आकेनाथ मौहे दरस दिखा दे, भटके मन को राह बता दे।
तुम बिन किसकी शरण में जाऊँ, कण-कण में तुमको ही पाऊ ।।
भक्तन से प्रीत लगाले, संकट हमसे दूर भगा दे।
जब तक जिये तुम्ही को ध्यावे, तुम्हारा जस सदा ही गांवे ।।
नाग चालिसा जो कोई गाये, सुख संपति धन धान्य पावै ।
हमको देवा कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ।।
मात पद्म संग वासुकी स्वामी, कृपा करहूँ अब अंतरयामी ।
दया करो पाताल निवासी दर्शन दो, मोहे अंखिया, प्यासी ॥
भुल-चूक क्षमा करो, देवा, लाज रखो सफल करो सेवा।
भीलट नाम जो मन में ध्यावे, सब सुख भोग परम पद पावै ।।
श्याम देह सिंदुर सी अरुधरी तेज सौ रुप, भीलट देव मन शांति दे, जय-जय नाग रुप ||
|| बोले भीलट राज की जय ||
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